वो मेरी छोटी बहन की शादी में आया था… और मेरी ज़िंदगी बदल गया!

शादी का माहौल, रिश्तेदारों की भीड़ और दिलों की हलचल – कुछ ऐसे ही लम्हों में ज़िंदगी अचानक नई दिशा ले सकती है। ये कहानी एक शादी की रस्मों के बीच शुरू होती है, जहाँ एक अजनबी ऐसा जुड़ाव बनाता है, जो रिश्तों, भावनाओं और आत्मीयता की सीमाओं को पार कर जाता है। ये कन्फेशन है एक शादीशुदा महिला का, जिसकी ज़िंदगी उसकी छोटी बहन की शादी में आए एक मेहमान ने हमेशा के लिए बदल दी। extra marital affairs story

मैं आरती हूँ, उम्र 32 साल। दिल्ली में अपने पति और 5 साल के बेटे के साथ एक अच्छी ज़िंदगी बिता रही थी। बाहर से सब कुछ परफेक्ट दिखता था – हँसता-खेलता परिवार, एक सुंदर घर, और समाज के हिसाब से एक “आदर्श” शादी। लेकिन इस आदर्श के पीछे एक सच्चाई थी जिसे मैं किसी से बाँट नहीं सकती थी।

मेरे पति विशाल एक अच्छे इंसान हैं, पर कहीं न कहीं हमारी शादी में वो स्पार्क नहीं बचा था। सेक्स अब सिर्फ एक “ड्यूटी” बन गई थी। ना उसमें प्यार था, ना कोई प्यास। मैं खुद को बस एक माँ और बीवी के रोल में घिसती जा रही थी। अंदर से खालीपन था, पर आदत हो गई थी उस खालीपन के साथ जीने की।

इसी बीच, मेरी छोटी बहन नीतू की शादी तय हो गई। घर में खुशी का माहौल था। मैं भी इस सब में व्यस्त होकर अपने मन की तन्हाई भूलना चाहती थी। शादी के एक दिन पहले सारी तैयारियाँ जोरों पर थीं। मेहमानों का आना-जाना शुरू हो गया था।

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और तब… वो आया।

नाम था संदीप – नीतू के होने वाले पति का ममेरा भाई। मेरी उम्र का ही था, शायद 33-34 साल। लंबा, गोरा, और उसकी आँखों में एक अजीब सी शरारत थी। पहली बार देखा तो नज़रें कुछ ज़्यादा ही रुक गईं। उसने भी मुझे देखा, और फिर हल्की मुस्कान के साथ “हाय भाभीजी” कहा। बस… वहीं से कहानी की शुरुआत हो गई।

शादी वाले घर में सब एक-दूसरे से जल्दी ही घुलमिल जाते हैं। वो भी पूरे घर में घूमता, सबकी मदद करता और मुझे हर जगह नज़र आ जाता। उसकी बातें मज़ेदार थीं, और अंदाज़… कुछ तो खास था।

एक दिन दोपहर में मैं अकेली कमरे में साड़ी प्रेस कर रही थी, तभी वो अंदर आ गया – “भाभीजी, कुछ मदद चाहिए क्या?”

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम लड़के प्रेस कर लेते हो?” “कभी-कभी… और कभी बहाने से बस पास आना होता है।” उसने बिना झिझक कहा।

मेरे गाल सुर्ख हो गए। मैं हँस कर रह गई लेकिन अंदर कुछ हलचल ज़रूर हुई।

शादी की रात डीजे पार्टी थी। सब मस्ती में डूबे थे। मैं भी पहली बार पूरे दिल से डांस कर रही थी। और अचानक वो मेरे पास आकर बोला – “भाभीजी, आज तो आप कमाल लग रही हैं।” उसकी नज़रों में कुछ था, जो मेरे मन की गहराई तक उतर गया।

रात को देर तक बातें होती रहीं – छत पर, धीमी आवाज़ों में, चुपके से। उसने कहा – “आपकी आँखें बहुत कुछ कहती हैं, बस आप सुनती नहीं।”

मैंने पहली बार किसी गैर मर्द के सामने अपना मन खोला। कहा – “मैं खुश हूँ, पर कभी-कभी लगता है जैसे कुछ अधूरा है।”

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उसने बस मेरा हाथ थामा और कहा – “कभी-कभी जो अधूरा है, वही असली होता है।”

उस रात कुछ नहीं हुआ – बस दिल जुड़ गए। अगले दिन वो चला गया। लेकिन बात यहीं नहीं रुकी।

शादी के बाद हम दोनों ने एक-दूसरे को मैसेज करना शुरू किया। धीरे-धीरे चैट्स इमोशनल होती गईं। फिर वीडियो कॉल्स। और फिर… एक दिन उसने कहा – “मैं दिल्ली आ रहा हूँ, मिलना है तुमसे।”

मैं बहुत डर गई। पर दिल कह रहा था – “इस अधूरेपन को पूरा होने दे।”

मैंने पहली बार अपने पति से झूठ बोला – “एक स्कूल मीटिंग है, मुझे जाना होगा।” और मैं होटल गई… संदीप से मिलने।

जब मैं होटल के कमरे में पहुँची, वो पहले से वहाँ था। दरवाज़ा खोला और बस मेरी तरफ देखा।

उसके बाद कुछ नहीं कहा गया… बस होंठ बोले, शरीर बोले, और वो अधूरापन जैसे अचानक पूरा हो गया।

हमने कुछ घंटे साथ बिताए – इमोशन, फिजिकल कनेक्शन, और वो सब जो शायद मेरी शादी में कभी नहीं था। मैंने पहली बार खुद को औरत की तरह महसूस किया – वांछनीय, चाही गई, और… पूरी।

उसके बाद हम कई बार मिले। हर बार एक नई कसक, एक नई राहत। मैं जानती थी ये रिश्ता “गलत” था, लेकिन मन ने कभी इसे पाप नहीं माना।

कुछ महीने बाद संदीप की शादी तय हो गई। उसने मुझसे कहा – “जो हमारे बीच था, वो हमेशा रहेगा। लेकिन अब मैं आगे बढ़ रहा हूँ।”

मैंने उसे रोका नहीं। शायद मैं खुद भी कहीं ये जानती थी कि ये रिश्ता बस कुछ पल का था। लेकिन उन पलों ने मुझे बदल दिया।

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अब मेरी ज़िंदगी वैसी ही है – पति, बेटा, घर… पर अब मैं अधूरी नहीं हूँ। मैंने खुद को महसूस किया, अपनी चाह को जाना। और सबसे बड़ी बात – मैंने अपने अंदर की “औरत” को फिर से जिंदा किया।

ये कहानी किसी को सही या गलत ठहराने के लिए नहीं है। ये बस एक एहसास है… जो कभी किसी की शादी में, किसी की नज़र में, या किसी स्पर्श में जाग उठता है।

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