वो मेरे पति का दोस्त था… पर मेरा कुछ और बन गया!

कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ सही और ग़लत की लकीर धुंधली हो जाती है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं अपने पति के सबसे करीबी दोस्त को उस नज़र से देखूंगी, जिससे एक पत्नी कभी नहीं देखनी चाहिए। लेकिन जो हुआ, वो मैं छुपा नहीं सकती… और आज मैं सब कुछ बताना चाहती हूँ — बेझिझक, बिना किसी डर के।

❝ वो मेरे पति का दोस्त था… पर मेरा कुछ और बन गया! ❞

कन्फेशन: एक शादीशुदा महिला की दिल से निकली कहानी

मैं नेहा, उम्र 29 साल, शादी को 4 साल हो चुके हैं। मेरे पति सौरभ एक अच्छे इंसान हैं – जिम्मेदार, मेहनती और हर किसी की मदद करने वाले। लेकिन कभी-कभी “अच्छा इंसान” होना, “अच्छा पार्टनर” होने से बहुत अलग होता है।
सौरभ हमेशा बिजी रहते थे, ऑफिस, क्लाइंट्स, टूर… और मैं घर में अकेली, खाली दीवारों से बातें करती रहती।

शादी के शुरुआती दो साल तो जैसे-तैसे निकल गए… लेकिन उसके बाद मुझे अपनी अधूरी इच्छाओं और अकेलेपन का एहसास होने लगा। मैं कोशिश करती रही… लेकिन मेरा मन और शरीर, दोनों तड़पने लगे थे।

फिर आया रोहित – मेरे पति का बेस्ट फ्रेंड।

रोहित और सौरभ बचपन के दोस्त हैं। रोहित अक्सर हमारे घर आता था। मैं भी उसे पहले बस “पति का दोस्त” समझती थी। लेकिन धीरे-धीरे, चीज़ें बदलने लगीं।

एक दिन, जब सौरभ किसी बिजनेस ट्रिप पर थे, रोहित लंच पर घर आया। मैं नॉर्मल ड्रेस में थी – हल्की साड़ी, बिना मेकअप के… लेकिन उसने देखा ऐसे जैसे मैं किसी फिल्म की हिरोइन हूं।

“तुम्हें साड़ी में देखकर समझ नहीं आता कि तारीफ़ करूं या बस देखता रहूं…”
उसका ये कहना मुझे अंदर तक गुदगुदा गया।

मैंने सिर्फ हँस कर टाल दिया… लेकिन उस दिन कुछ बदल गया।

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❝ वो बातें, जो मेरे पति ने कभी नहीं की… ❞

सौरभ जब भी घर पर होते, या तो फोन पर बिज़ी रहते या सो जाते। लेकिन रोहित… वो मेरी हर बात सुनता। मेरी आँखों में देखता, मेरी बातों पर हँसता और मेरी हर छोटी-सी चीज़ नोट करता।

एक दिन, मैंने मज़ाक में कहा,

“शायद तुम मेरे पति होते, तो मेरी लाइफ कुछ और होती।”

और उसने मुस्कुराकर कहा,

“तो आज़मा कर देख लो, मैं कैसा पति होता।”

उस दिन पहली बार मैंने उसकी आँखों में एक अलग सी आग देखी थी – चाहत की, ललक की… और शायद मेरी आँखों में भी।

❝ बारिश की एक शाम, जो हमारे बीच बहुत कुछ भिगो गई… ❞

सौरभ फिर से किसी ऑफिशियल टूर पर थे। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। रोहित आया था कोई किताब वापस करने।

मैंने कहा, “चाय बनाऊं?”
उसने जवाब दिया, “अगर तुम पिलाओ तो जहर भी चलेगा।”

हम दोनों हँस पड़े… लेकिन वो हँसी एक इशारा थी।

मैंने पहली बार उसे अपने पास बैठने दिया… थोड़ा करीब, थोड़ा और करीब…
और फिर…

उसके होंठ मेरे माथे पर थे, मेरी साँसें उसकी गर्दन में उलझ रही थीं, और मैं भूल चुकी थी कि वो सौरभ का दोस्त है।
उस रात मैंने खुद को पहली बार औरत की तरह महसूस किया – पूरी, जिंदा, स्पर्श से सराबोर।

❝ गिल्ट… या फिर एक्साइटमेंट? ❞

सुबह जब नींद खुली, रोहित मेरे पास ही था। मैंने सोचा – “क्या किया मैंने?”

लेकिन फिर उसने मेरी आँखों में देखा और कहा,

“अगर ये गलत है, तो मुझे जिंदगी भर ये गलती करनी है।”

उसके बाद कई बार ऐसा हुआ… जब भी सौरभ ऑफिस से बाहर होते, रोहित मेरे पास होता।

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मैं जानती थी, ये सब ठीक नहीं था। लेकिन ये “गलत” लगने वाला रिश्ता, मुझे वो खुशी दे रहा था जो “सही” रिश्ता कभी नहीं दे पाया।

❝ एक दिन… सौरभ ने सब जान लिया ❞

सौरभ को मेरे फोन में रोहित के कुछ मैसेज दिख गए। उसने सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन धीरे-धीरे उसकी आँखों में शक साफ़ झलकने लगा।

एक रात उसने मुझसे पूछा,

“नेहा, क्या तुम रोहित से प्यार करती हो?”

मैं चुप रही। और उसी चुप्पी में सब कह दिया

❝ क्या मैं रोहित को चुनती हूँ? ❞

नहीं… मैंने रोहित को नहीं चुना।

मैंने खुद को चुना।

मैंने सौरभ से कहा – “मैंने गलती की, लेकिन वो गलती मेरी जरूरत थी। मैं अब किसी के साथ नहीं रहना चाहती – न तुम्हारे, न रोहित के।”

मैंने दोनों से दूरी बना ली। डिवोर्स नहीं लिया, लेकिन अलग रहना शुरू कर दिया।

❝ 2 साल बाद… मैं कैसी हूँ? ❞

अब मैं अकेली हूँ – लेकिन तन्हा नहीं।

मैंने एक NGO जॉइन किया है। बच्चों के लिए काम करती हूँ। मैंने खुद को पहचाना है – एक औरत जो सिर्फ किसी की बीवी या प्रेमिका नहीं है, बल्कि खुद भी एक इंसान है।

कभी-कभी रोहित के मैसेज आते हैं – “क्या तुम खुश हो?”

मैं जवाब देती हूँ –

“हाँ, क्योंकि अब जो रिश्ता है – वो सिर्फ मेरा है, खुद से।”

सीख:

गलतियां हर कोई करता है, लेकिन उनसे बाहर निकलना, खुद को समझना – यही असली ज़िंदगी है।
कभी-कभी जो चीज़ें हमें खुशी देती हैं, वो हमेशा के लिए नहीं होती… लेकिन वो हमें बदल जरूर देती हैं।

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