कन्फेशन: एक शादीशुदा महिला की निजी कहानी
मैं रिया हूँ। उम्र 29 साल। शादी को 5 साल हो चुके हैं और एक 3 साल का बेटा भी है। पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, सुबह 9 बजे निकलते हैं और रात 9 बजे तक लौटते हैं। ज़िंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था — कम से कम दिखने में। लेकिन जो अधूरापन अंदर था, वो किसी को दिखता नहीं था। ये कन्फेशन मैं अपने मन का बोझ हल्का करने के लिए लिख रही हूँ। शायद कोई मुझे समझे… या शायद खुद को मैं और बेहतर समझ सकूं।
शादी का प्यार… या एक आदत?
मेरी और अमित (मेरे पति) की शादी अरेंज थी। अमित बहुत अच्छे इंसान हैं, ज़िम्मेदार, सज्जन, और बहुत मेहनती। लेकिन रिश्ते में जो नमी होती है, वो कभी आई ही नहीं। हनीमून के बाद जैसे सब ठंडा पड़ गया था। प्यार, स्पर्श, और वो फिजिकल इंटिमेसी जो एक पत्नी अपने पति से उम्मीद करती है — धीरे-धीरे वो सिर्फ एक “ज़रूरी काम” बनकर रह गया।
रात को वो थके होते थे, और मैं तन्हा।
और फिर हमारी बिल्डिंग में एक नया किराएदार आया…
राहुल। उम्र लगभग 33। सिंगल। स्मार्ट, थोड़ा सा रफ, थोड़ा सा मिस्टेरियस। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी — जैसे सबकुछ जानता हो, और कुछ भी न कहता हो। पहले कुछ मुलाक़ातें लिफ्ट में हुईं। फिर धीरे-धीरे बातें शुरू हुईं। “Hi”, “Hello”, और फिर एक दिन उसने पूछा – “आप बहुत अकेली दिखती हैं… ठीक हैं?”
उसके उस एक सवाल ने मेरी पूरी दुनिया को हिला दिया।
वो दिन… जब पति ऑफिस में थे
अमित एक वीकेंड पर भी ऑफिस चले गए थे — क्लाइंट डेडलाइन थी। बेटा अपने ननिहाल गया था। मैं बालकनी में बैठी थी, अकेली, एक चाय का कप हाथ में। तभी राहुल आया। वो मेरी बालकनी से नीचे देख रहा था, और बोला – “आपके हाथ की चाय पी सकता हूँ?”
मैं हँसी। “आ जाइए ऊपर, बना देती हूँ।”
बस यहीं से शुरुआत हुई।
एक कप चाय… और कई अनकहे जज़्बात
हमने चाय पी, और बातें कीं। वो मेरी कविताएं सुनना चाहता था। मैंने उसे अपनी डायरी दिखाई। उसने तारीफ की, मेरी आंखों को देखकर बोला — “इतना दर्द छुपाती हो, थक नहीं जाती?”
मैं चुप रही। फिर अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। “रिया, तुम बहुत अकेली हो। और मैं भी। क्या हम एक-दूसरे की तन्हाई बांट सकते हैं?”
उस पल मेरे शरीर में कुछ हुआ — कुछ गर्म, कुछ नर्म, कुछ बहुत गहरा। मैं ना नहीं कह पाई।
पहली बार… वो शाम
शायद इसे गलत कहा जाएगा, लेकिन उस दिन मेरे अंदर की औरत पहली बार जागी। राहुल ने मुझे छुआ, वैसे जैसे किसी ने सालों में नहीं छुआ था। वो कोई जल्दबाज़ नहीं था, हर चीज़ धीरे, समझदारी और पूरी इज्ज़त के साथ कर रहा था। उस शाम मेरे लिए सिर्फ एक फिजिकल एक्सपीरियंस नहीं था — वो एक इमोशनल रिलीज़ था।
मैंने पहली बार किसी के सामने अपने कपड़े खुद उतारे — न डरते हुए, न शर्माते हुए।
गिल्ट… और फिर फिर से वो अहसास
उस रात मैं बहुत रोई। मुझे लगा मैं गिरी हूँ, गलत हूँ। लेकिन जब अमित घर लौटे और मुझसे सिर्फ काम की बातें कीं — जैसे मैं कोई मशीन हूँ — तो मुझे एहसास हुआ कि जो कुछ हुआ वो सिर्फ मेरी गलती नहीं थी। मैं प्यार की भिखारन नहीं थी, मैं इंसान थी… और इंसानों को प्यार चाहिए होता है।
राहुल से मेरा रिश्ता छुपा हुआ था, लेकिन बहुत गहरा था। वो सिर्फ मेरा आशिक नहीं था, वो मेरा दोस्त भी बन गया था।
एक दिन अमित ने कुछ महसूस किया
“तुम कुछ बदल गई हो, रिया…” — अमित ने कहा।
“कपड़े, मुस्कान… और आँखों की चमक, अब कुछ और है।”
मैंने कुछ नहीं कहा। क्या कहती?
राहुल को मैंने एक दिन कह दिया — “ये रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल सकता… एक दिन सब टूट जाएगा।”
उसने कहा — “मैं कुछ मांगता भी नहीं रिया… मैं बस तुम्हें वो देता हूँ जो तुम्हारे अपने छीन चुके हैं — तुम्हारा हक़।”
एक मोड़… जब बेटा बीमार पड़ा
बेटे को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। अमित बहुत घबरा गया था। उस समय मैंने देखा — हां, वो मुझे प्यार करता है, लेकिन वो सिर्फ एक ज़िम्मेदार पति है… वो एक चाहने वाला मर्द नहीं है। और मुझे दोनों चीजें चाहिए थीं।
मैंने राहुल से दूरी बनानी शुरू कर दी।
उसने समझा। धीरे-धीरे हम बात करना बंद कर दिए।
आज… मैं कैसी हूँ?
आज मैं उसी घर में हूँ। पति ऑफिस जाते हैं, बेटा स्कूल जाता है। मैं अपनी दुनिया में हूँ — लेकिन अब खुद से झूठ नहीं बोलती। राहुल मेरी ज़िंदगी का वो चैप्टर था जिसे मैं मिटा नहीं सकती — और ना ही चाहती हूँ।
मैंने उससे जो पाया, वो आज भी मुझे गर्माहट देता है।
मैं जानती हूँ कि कई लोग मुझे जज करेंगे। लेकिन अगर आप मेरी जगह होते — उस अकेलेपन में, उस बेइज़्ज़ती में, उस प्यास में — तो शायद मेरी तरह ही सोचते।
निष्कर्ष
हर रिश्ता परफेक्ट नहीं होता। और हर परफेक्शन की परिभाषा समाज नहीं तय कर सकता। कभी-कभी एक गलत रिश्ता ही हमें हमारे अंदर की सच्चाई से मिला देता है।